ICRA की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बिजली मांग अगले 5 वर्षों में 6-6.5% की दर से बढ़ेगी। इलेक्ट्रिक वाहन, डेटा सेंटर और ग्रीन हाइड्रोजन इस वृद्धि को बढ़ावा देंगे, जबकि रूफटॉप सोलर ग्रिड की मांग को संतुलित करेगा। विस्तृत रिपोर्ट पढ़ें।
ANI Services| 28 May 2025
EV, डेटा सेंटर और ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर मांग में बनेंगे बड़े कारक, रूफटॉप सोलर योजनाएं ग्रिड पर डालेंगी असर
नई दिल्ली – भारत की बिजली मांग में अगले पांच वर्षों के दौरान वार्षिक 6.0 से 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा सकती है। यह अनुमान देश की अग्रणी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए (ICRA) ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में जताया है। यह वृद्धि ऊर्जा क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण बदलावों – इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की लोकप्रियता, डेटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार और ग्रीन हाइड्रोजन सेगमेंट की प्रगति – के चलते संभावित मानी जा रही है।

EVs, डेटा सेंटर और ग्रीन हाइड्रोजन से आएगी 25% अतिरिक्त बिजली की मांग
आईसीआरए के कॉर्पोरेट रेटिंग्स के उपाध्यक्ष और सह-समूह प्रमुख विक्रम वी ने कहा, “इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, डिजिटल डेटा की बढ़ती मांग और स्वच्छ ऊर्जा के नए रास्तों जैसे ग्रीन हाइड्रोजन जैसे खंड, वित्त वर्ष 2026 से 2030 तक की अवधि में कुल वृद्धि का 20-25% योगदान देंगे।”
विशेषज्ञों के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहनों की व्यापकता विभिन्न सेगमेंट्स में बढ़ेगी, जहां तीन-पहिया वाहनों में सबसे ज्यादा मांग की संभावना जताई गई है। इसके बाद दो-पहिया, ई-बसों और निजी यात्री वाहनों की बारी आएगी। यह बदलाव पारंपरिक ईंधनों पर निर्भरता को कम करेगा और बिजली की मांग को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।
रूफटॉप सोलर और ऑफ-ग्रिड परियोजनाएं ग्रिड की मांग में लाएँगी संतुलन
हालांकि, बिजली ग्रिड पर इस बढ़ती मांग का दबाव कुछ हद तक ऑफसेट होने की संभावना है। यह प्रभाव रूफटॉप सोलर और ऑफ-ग्रिड ऊर्जा परियोजनाओं की बढ़ती स्वीकार्यता के कारण होगा। इन परियोजनाओं को भारत सरकार की प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना जैसी पहल से बल मिल रहा है, जो घरेलू स्तर पर सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। इससे आम जनता को बिजली पर आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिल रहा है, जिससे केंद्रीकृत ग्रिड पर भार कुछ कम हो सकता है।

थर्मल प्लांट की लोड क्षमता में सुधार, 2026 में PLF 70% रहने का अनुमान
आईसीआरए ने यह भी अनुमान जताया कि वित्त वर्ष 2026 में थर्मल पावर प्लांट्स का PLF (Plant Load Factor) लगभग 70 प्रतिशत तक बना रहेगा। यह आंकड़ा 5.0-5.5% की मांग वृद्धि की पृष्ठभूमि में काफी सकारात्मक माना जा रहा है, जो ऊर्जा क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने की क्षमता को दर्शाता है।
बिजली उत्पादन क्षमता में रिकॉर्ड वृद्धि
भारत की बिजली उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि भी देखी जा रही है। वित्त वर्ष 2024 में जहां 34 गीगावाट की नई क्षमता जुड़ी थी, वहीं वित्त वर्ष 2026 तक यह 44 गीगावाट के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच सकती है। इस वृद्धि का मुख्य आधार नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) और थर्मल ऊर्जा, दोनों ही स्रोतों में नया निवेश और परियोजनाएं होंगी।
आईसीआरए की रिपोर्ट के अनुसार, “थर्मल पावर से 9-10 गीगावाट की नई क्षमता वित्त वर्ष 2026 में जुड़ने की उम्मीद है, जबकि बड़ा हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से आएगा। हालांकि RE सेगमेंट लीडिंग रोल में रहेगा, मगर थर्मल सेगमेंट में भी निर्माणाधीन परियोजनाएं बढ़ी हैं और वर्तमान में 40 गीगावाट से अधिक क्षमता निर्माणाधीन है।
मॉनसून और कृषि की मांग में गिरावट का असर
आईसीआरए ने इस वृद्धि के साथ एक चेतावनी भी जोड़ी है। एजेंसी का मानना है कि वित्त वर्ष 2026 में बिजली की मांग में वृद्धि 6.5% की अनुमानित जीडीपी वृद्धि से थोड़ी कम रह सकती है। इसका मुख्य कारण समय से पहले शुरू होने वाला मानसून और औसत से बेहतर वर्षा हो सकता है, जो कृषि और कूलिंग सेक्टर की बिजली मांग को कम कर देता है।
भारत आने वाले वर्षों में ऊर्जा मांग और उत्पादन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संक्रमण से गुजर रहा है। जहां एक ओर नई तकनीकों और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी से ग्रिड पर दबाव बढ़ेगा, वहीं रूफटॉप सोलर और नवीकरणीय स्रोत इस दबाव को संतुलित करने में मदद करेंगे। ICRA की यह रिपोर्ट ऊर्जा क्षेत्र के सभी हितधारकों – नीति निर्धारकों, उद्योगपतियों, निवेशकों और आम जनता के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश का कार्य कर सकती है।
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