भारत का 1974 परमाणु परीक्षण और वैश्विक प्रतिक्रिया – Top15News: Latest India & World News, Live Updates

18 मई 1974 को भारत ने Smiling Buddha के नाम से पहला परमाणु परीक्षण किया। इस कदम पर दुनिया की प्रतिक्रिया क्या थी? जानिए अमेरिका, चीन, पाकिस्तान समेत दुनियाभर की प्रतिक्रियाओं की पूरी कहानी।

जब 18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया जिसका कोड का नाम “Smiling Buddha” था तो पूरी दुनिया एकदम चौंक गई। भारत जैसे विकासशील देश द्वारा परमाणु ताकत का प्रदर्शन सिर्फ तकनीकी चमत्कार नहीं था, बल्कि यह एक राजनीतिक बयान भी था। इसके बाद अलग-अलग देशों की प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग थीं, कुछ ने इसकी आलोचना की, कुछ ने चिंता जताई, तो कुछ ने इसे भारत की वैज्ञानिक उपलब्धि माना।

मुख्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण और जटिल रही। दुनिया भर के कई देश भारत के इस परमाणु परीक्षण को लेकर चौंक गए, और इसकी प्रतिक्रियाएं राजनीतिक, कूटनीतिक और तकनीकी स्तर पर देखने को मिलीं।

अमेरिका (USA):

अमेरिका को यह परीक्षण अचानक और अप्रत्याशित लगा। अमेरिका को डर था कि भारत अब एक हथियार रेस शुरू कर सकता है। अमेरिका ने भारत के इस कदम की कड़ी आलोचना की और नाराजगी जताई। साथ ही अमेरिका ने भारत पर तकनीकी और वैज्ञानिक प्रतिबंध लगाए। इसके बाद भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) के गठन का सामना करना पड़ा, जिसका उद्देश्य था कि भविष्य में भारत जैसे देश परमाणु तकनीक का “शांतिपूर्ण उपयोग” कहकर बम न बना सकें।

कनाडा:

कनाडा भारत का परमाणु कार्यक्रम में एक मुख्य सहयोगी था (CIRUS रिएक्टर भारत को कनाडा से ही मिला था)। परीक्षण के बाद कनाडा ने भारत से nuclear cooperation समाप्त कर दिया और आरोप लगाया कि भारत ने उसकी दी गई तकनीक का दुरुपयोग किया, क्योंकि भारत ने जो प्लूटोनियम इस्तेमाल किया वो Canada-supplied reactor से आया था। यह भारत-कनाडा संबंधों में टकराव का बड़ा कारण बना।

चीन (China):

चीन पहले से परमाणु शक्ति था। उसे भारत का ये कदम रणनीतिक खतरे के रूप में दिखा, लेकिन एक हद तक यह अपेक्षित था क्योंकि चीन पहले से परमाणु शक्ति था (1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण किया था)। चीन को भारत के इस कदम से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में खतरा महसूस हुआ।

ब्रिटेन (UK):

ब्रिटेन ने संयमित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चिंता जताई लेकिन खुले तौर पर भारत की निंदा नहीं की। उन्होंने इसे region की stability के लिए एक चुनौती माना।

सोवियत संघ (USSR):

भारत के साथ अच्छी दोस्ती होने के कारण USSR (आज का रूस) ने ज़्यादा विरोध नहीं किया। उन्होंने भारत के self-defense और sovereignty के अधिकार को महत्व दिया।

पाकिस्तान:

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया तीव्र और तीखी थी। उस समय के प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो (तब के प्रधानमंत्री) ने कहा:-

हम घास खाएंगे, लेकिन बम ज़रूर बनाएंगे।” (We will eat grass, even go hungry, but we will get one of our own (atom bomb))

इसके बाद पाकिस्तान ने भी अपना परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया, जिसे डॉक्टर अब्दुल कादिर खान ने आगे बढ़ाया, जो आगे चलकर 1998 में परमाणु परीक्षण में बदला। 

अन्य यूरोपीय देश:

यूरोप में भी मिश्रित प्रतिक्रियाएं आईं, कुछ देशों ने भारत की तकनीकी उपलब्धि को सराहा। लेकिन ज़्यादातर ने इसे परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के खिलाफ माना और इसकी आलोचना की। भारत पर कुछ तकनीकी और वैज्ञानिक निर्यात प्रतिबंध लगाए गए।

भारत के परमाणु परीक्षण (Smiling Buddha) ने केवल एक तकनीकी उपलब्धि ही नहीं दिखाई, बल्कि उसने दुनिया की राजनीति और सामरिक सोच को भी झकझोर दिया।


कुछ देशों ने इसे शांति के नाम पर खतरा” कहा, तो कुछ ने भारत की scientific capability की सराहना की।
पर एक बात तय थी — भारत को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था।

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