शनिदेव को तेल चढ़ाना हिंदू धर्म की एक प्रसिद्ध और रहस्यमयी परंपरा है। यह केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, विश्वास और पौराणिक कथाओं से जुड़ा गहरा अनुभव है। आइए जानते हैं इसके पीछे की प्रमुख मान्यताएं, कथाएं और लाभ।
क्यों चढ़ाया जाता है शनिदेव को सरसों का तेल?
अगर कोई आपसे पूछे कि आपकी रसोई में ऐसी कौन-सी चीज़ है जिससे शनिदेव प्रसन्न हो सकते हैं, तो आपका जवाब होगा—सरसों का तेल। शनिवार को लोग मंदिरों में जाकर शनिदेव को तेल अर्पित करते हैं। लेकिन इसके पीछे क्या वजह है? क्या लोग डर से ऐसा करते हैं, या कोई गहरी पौराणिक कथा इसका कारण है?
हिंदू धर्म में हर परंपरा के पीछे कोई न कोई गूढ़ अर्थ होता है। शनिदेव को तेल चढ़ाने की परंपरा भी इससे अलग नहीं है।

कथा 1: हनुमानजी द्वारा शनिदेव की मुक्ति
स्थान: त्रेतायुग, लंका
प्रसंग: रावण ने मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रहों को अनुकूल स्थिति में बैठने का आदेश दिया।
घटना: शनिदेव ने नियम तोड़ा और मेघनाद की कुंडली में मृत्यु योग बना दिया।
परिणाम: रावण ने उन्हें काल कोठरी में बंद कर दिया।
वर्षों बाद हनुमानजी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे। वहां उन्होंने शनिदेव की पुकार सुनी और उन्हें बंदीगृह से मुक्त किया।
शनिदेव की दृष्टि कष्टदायक थी, लेकिन जब उन्होंने हनुमानजी पर दृष्टि डाली, तो खुद ही पीड़ा में पड़ गए।
हनुमानजी पर उनकी दृष्टि का कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद शनिदेव ने वचन दिया:
“जो भी शनिवार को श्रद्धा से सरसों का तेल चढ़ाएगा या हनुमानजी का स्मरण करेगा, उस पर मेरा अशुभ प्रभाव नहीं पड़ेगा।”
यहीं से शुरू हुई शनिवार को तेल चढ़ाने की परंपरा।
कथा 2: ऋषि पिप्लाद की कथा
पिप्लाद ऋषि का जन्म पीपल के पेड़ की छांव में हुआ था। वे महर्षि दधीचि के पुत्र थे, जिन्होंने अपनी अस्थियां देवताओं की रक्षा के लिए दान दी थीं। पिप्लाद को जब पता चला कि उनके पिता की मृत्यु का कारण शनिदेव की दशा थी, तो वे क्रोधित हो गए।
उन्होंने तप करके ब्रह्माजी से ब्रह्मदंड मांगा और शनिदेव पर प्रहार किया।
परिणाम: शनिदेव घायल हुए और ब्रह्माजी से शरण मांगी।
ब्रह्माजी के समझाने पर पिप्लाद शांत हुए लेकिन एक शर्त रखी:
“पांच वर्षों तक शनि किसी बालक की कुंडली में प्रभाव नहीं डालेगा। जो श्रद्धा से पीपल की पूजा करेगा और शनिदेव को तेल चढ़ाएगा, उस पर कुप्रभाव नहीं पड़ेगा।”
इस शर्त को शनिदेव ने स्वीकार किया। उन्होंने न्यायप्रिय रहने का वचन भी दिया।
कथा 3: हनुमानजी और शनिदेव का युद्ध
एक समय शनिदेव को अपने बल पर घमंड हो गया था। उन्होंने हनुमानजी को युद्ध के लिए ललकारा।
हनुमानजी उस समय श्रीराम के ध्यान में लीन थे। लेकिन शनिदेव नहीं माने।
हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट लिया और रामसेतु की परिक्रमा शुरू कर दी।
शनिदेव का शरीर रगड़ खाकर घायल हो गया। उन्हें पीड़ा हुई और उन्होंने क्षमा मांगी।
हनुमानजी ने उनके घावों पर तेल लगाया जिससे उन्हें राहत मिली।
इसके बाद शनिदेव ने वचन दिया:
“जो भक्त मुझे तेल चढ़ाएगा, उसके जीवन के दुख दूर होंगे और शनि दोष भी कम होगा।”
शनिदेव को तेल चढ़ाने के लाभ
शनिदेव को तेल चढ़ाने से केवल आध्यात्मिक लाभ नहीं, बल्कि ज्योतिषीय राहत भी मिलती है:
- साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत
- ग्रह दोषों का शमन
- सुख, समृद्धि और मानसिक शांति
- शरीर के हड्डियों और घुटनों की पीड़ा में आराम
कुछ जरूरी बातें
- तेल चढ़ाने से पहले उसमें अपना चेहरा जरूर देखें। ऐसा करने से दोष कम होते हैं।
- शनिवार को कान, घुटनों और हड्डियों पर तेल मालिश करना लाभकारी माना गया है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।top15news इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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