भारत में हर वर्ष 27 मई को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि मनाई जाती है। यह केवल एक नेता को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि उस युगपुरुष को सम्मानित करने का दिन है, जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक मजबूत, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और आधुनिक भारत की नींव रखी। पंडित नेहरू का जीवन और उनके आदर्श आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका सपना था – एक ऐसा भारत जो सामाजिक समानता, वैज्ञानिक प्रगति और वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ आगे बढ़े।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। उनके पिता मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और उनका परिवार सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत प्रतिष्ठित था। नेहरू जी ने प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की और बाल्यकाल से ही उनमें अध्ययन और तार्किक चिंतन की गहरी रुचि थी।
उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए और वहाँ हैरो स्कूल और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उन्होंने विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और लंदन के इनर टेम्पल से कानून की पढ़ाई पूरी की। भारत लौटने के बाद उन्होंने कुछ समय वकालत की, लेकिन देश में ब्रिटिश शासन की क्रूरता और स्वतंत्रता की पुकार ने उन्हें राजनीति की ओर आकर्षित किया।
स्वतंत्रता संग्राम में नेहरू जी की भूमिका
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने नेहरू जी को गहरे झकझोर कर रख दिया। इस घटना ने उनके भीतर राष्ट्रभक्ति की चिंगारी को प्रज्वलित किया और उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद वे नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसी ऐतिहासिक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाते रहे। वे कई बार जेल गए, लेकिन उनका संकल्प अडिग रहा।
1930 में वे पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने युवाओं को राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों को प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू जी की उपलब्धियाँ (1947–1964)
15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होने पर पंडित नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने 17 वर्षों तक यह पद संभाला, जो भारत के इतिहास में सबसे लंबा प्रधानमंत्री कार्यकाल रहा। इस दौरान उन्होंने भारत में लोकतंत्र की नींव मजबूत की, संसद, संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखा।
आर्थिक दृष्टि से उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की और सार्वजनिक क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया। उनका उद्देश्य था भारत को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से औद्योगिक और तकनीकी रूप से सशक्त राष्ट्र बनाना। उन्होंने इस्पात संयंत्र, पावर प्रोजेक्ट, सिंचाई योजनाएँ और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक संस्थानों की स्थापना की।
उनकी पहल पर भारत में IIT, IISc, ISRO और AIIMS जैसे संस्थान स्थापित हुए, जिनका योगदान आज भी भारत की वैज्ञानिक, तकनीकी और स्वास्थ्य सेवाओं में अद्वितीय है। विदेश नीति में उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की और भारत को वैश्विक मंच पर स्वतंत्र और सम्मानित राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
चाचा नेहरू और बच्चों के प्रति स्नेह
पंडित नेहरू का बच्चों के प्रति विशेष स्नेह उन्हें आज भी ‘चाचा नेहरू’ के रूप में अमर बनाता है। उनका मानना था कि बच्चे देश का भविष्य हैं और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के सभी अवसर मिलना चाहिए। वे बच्चों के अधिकारों और उनके समग्र विकास के पक्षधर थे। यही कारण है कि उनका जन्मदिन 14 नवंबर भारत में ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
आलोचना और चुनौतियाँ
पंडित नेहरू की कुछ नीतियाँ समय के साथ आलोचना का विषय बनीं। कश्मीर नीति को लेकर विपक्ष और जनता में असंतोष रहा। 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा, जिससे उनके नेतृत्व की आलोचना हुई। इसके अलावा, लाइसेंस राज और भारी सरकारी नियंत्रण की नीतियों को बाद में भारत के आर्थिक विकास में बाधा माना गया।
फिर भी, यह निर्विवाद है कि नेहरू जी ने एक मजबूत लोकतांत्रिक ढाँचा और संस्थागत व्यवस्था तैयार की, जिसकी नींव पर आज भी भारतीय राजनीति और शासन प्रणाली टिकी हुई है। उन्होंने भारत को वैश्विक स्तर पर एक सशक्त और सम्मानित राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुण्यतिथि का महत्व और विरासत
27 मई 1964 को पंडित नेहरू का निधन हो गया और उनके निधन पर देशभर में गहरा शोक छा गया। उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। आज भी उनकी समाधि स्थल ‘शांति वन’ पर हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न संगठनों में उनके जीवन और आदर्शों पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
पंडित नेहरू की विरासत केवल उनके द्वारा बनाई गई नीतियों और संस्थानों में ही नहीं, बल्कि उन मूल्यों और आदर्शों में भी जीवित है जिन पर भारत की आत्मा टिकी हुई है – धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, समानता और प्रगति की राह पर चलना।
उनकी प्रसिद्ध उक्ति थी:
“Aaram haram hai!” – यानी आराम हराम है, जो हमें कड़ी मेहनत, समर्पण और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बने रहने की प्रेरणा देती है।
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