WSJ News | 30 May 2025
अमेरिका में चीनी छात्रों पर सख्त वीज़ा नीति से यूनिवर्सिटीज़ की आय पर असर, वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ी, और शिक्षा क्षेत्र की साख पर संकट।
नई दिल्ली/वॉशिंगटन: अमेरिका में चीनी छात्रों के खिलाफ हालिया वीज़ा नीतियों की सख्ती ने उच्च शिक्षा क्षेत्र में चिंता की लहर पैदा कर दी है। ट्रंप प्रशासन द्वारा लागू की गई इन नीतियों का सीधा असर अमेरिका की बड़ी सार्वजनिक यूनिवर्सिटीज़ के राजस्व पर पड़ रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों के ट्यूशन फीस पर काफी हद तक निर्भर हैं।
चीनी छात्रों पर लक्षित कार्रवाई
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में चीनी छात्रों के वीज़ा इंटरव्यू पर रोक लगाने और ऐसे छात्रों के वीज़ा रद्द करने की योजना बनाई है जो “संवेदनशील क्षेत्रों” में पढ़ाई कर रहे हैं या जिनके संबंध चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से हैं। यह निर्णय अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, लेकिन शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इसका नुकसान अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ को झेलना पड़ेगा।

राजस्व का बड़ा हिस्सा खतरे में
अमेरिका की पब्लिक यूनिवर्सिटीज़ जैसे कि कैलिफोर्निया, टेक्सास और इलिनॉय की यूनिवर्सिटीज़ अपने बजट का बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय छात्रों के माध्यम से प्राप्त ट्यूशन फीस से चलाती हैं। इन छात्रों की फीस आम अमेरिकी छात्रों की तुलना में कई गुना अधिक होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने चेतावनी दी है कि पहले ही उन्हें 3% का बजट कट झेलना पड़ा है और यदि चीनी छात्रों की संख्या में गिरावट आई, तो यह कट और बढ़ सकता है जिससे शैक्षणिक सेवाओं और छात्रवृत्तियों पर असर पड़ेगा।
छात्रों में अनिश्चितता और गिरता रुझान
इन कड़े नियमों के चलते न केवल वर्तमान चीनी छात्र परेशान हैं, बल्कि संभावित छात्र भी अब अमेरिका आने से कतरा रहे हैं। शिक्षा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संस्था QS के अनुसार, “स्टडी इन अमेरिका” गाइड के पेज व्यूज़ में 17.6% की गिरावट देखी गई है, और भारत जैसे देशों से यह गिरावट 50% से अधिक है।
शिक्षा की वैश्विक प्रतिस्पर्धा
इन हालातों का लाभ अन्य देश उठा रहे हैं। जर्मनी, फ्रांस, आयरलैंड और जापान जैसे देशों ने अमेरिकी नीतियों से प्रभावित छात्रों को आकर्षित करने के लिए खास पैकेज तैयार किए हैं। इनमें ट्यूशन माफ, स्कॉलरशिप्स और रहने-खाने की सुविधाएं शामिल हैं। यह न केवल अमेरिका की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ा रहा है, बल्कि “ब्रेन ड्रेन” की संभावना को भी जन्म दे रहा है।
राजनैतिक उद्देश्य या राष्ट्रीय सुरक्षा?
इन फैसलों की आलोचना करने वालों का मानना है कि यह कदम राजनैतिक फायदे के लिए उठाए गए हैं, खासकर 2024 के चुनावों के बाद ट्रंप की नीतियों में फिर से सख्ती देखी जा रही है। वहीं, समर्थकों का कहना है कि ये फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से ज़रूरी हैं क्योंकि अमेरिका में तकनीकी और सैन्य क्षेत्र में जासूसी की आशंका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
शैक्षिक संस्थानों की प्रतिक्रिया
कई यूनिवर्सिटी अधिकारियों और शैक्षणिक समूहों ने इस नीति का विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे अमेरिका की शिक्षा प्रणाली की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा और विविधता पर भी असर पड़ेगा। कुछ संस्थाओं ने कानूनी विकल्पों पर भी विचार शुरू कर दिया है।
चीनी छात्रों पर ट्रंप प्रशासन की सख्ती ने अमेरिका के उच्च शिक्षा क्षेत्र को आर्थिक और वैश्विक रूप से अस्थिर कर दिया है। यदि यह रुझान जारी रहता है, तो न केवल विश्वविद्यालयों की आय पर असर पड़ेगा, बल्कि अमेरिका की वैज्ञानिक, तकनीकी और शैक्षणिक श्रेष्ठता पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है।
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