Delhi University (DU) में एक बार फिर आरक्षित वर्ग की नियुक्ति को लेकर बहस तेज हो गई है। इस बार मुद्दा केवल शिक्षण पदों तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालय के शीर्ष प्रशासनिक पदों—जैसे सम-कुलपति (Pro-Vice Chancellor) और दक्षिणी परिसर के निदेशक—पर आरक्षित वर्ग के योग्य प्रोफेसरों की नियुक्ति की मांग हो रही है। यह मांग फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (FASJ) की ओर से सामने आई है, जिसने कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखकर यह अपील की है।
डीयू का 103वां वर्ष, पर प्रतिनिधित्व का अभाव
Delhi University अपने 103वें स्थापना वर्ष में प्रवेश कर चुका है, लेकिन अब तक एक भी SC, ST या OBC प्रोफेसर को सम-कुलपति या निदेशक जैसे पदों पर नियुक्त नहीं किया गया है। यह जानकारी फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने साझा की। उनके अनुसार यह न केवल आरक्षण नीति की भावना के विरुद्ध है, बल्कि समावेशी नेतृत्व के सिद्धांतों के भी विपरीत है।
प्रशासनिक पद खाली, अवसर का सही समय
वर्तमान समय में डीयू के सम-कुलपति और दक्षिणी परिसर निदेशक दोनों पद रिक्त हैं। फोरम का मानना है कि यह एक उपयुक्त अवसर है जब आरक्षित वर्ग को नेतृत्व में प्रतिनिधित्व देने की दिशा में कदम उठाए जाएं। डॉ. सुमन ने कहा कि Delhi University को चाहिए कि वह एससी, एसटी, ओबीसी और पीडब्ल्यूडी वर्ग के योग्य और वरिष्ठ प्रोफेसरों को इन पदों के लिए प्राथमिकता दे।
संसदीय समिति की सिफारिशों की अनदेखी
अप्रैल 2025 में संसद की SC-ST कल्याण समिति ने Delhi University का दौरा किया था। इस दौरान समिति ने स्पष्ट रूप से सुझाव दिया था कि आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। हालांकि, अब तक कोई ठोस कदम इस दिशा में उठाया नहीं गया है, जिससे विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता पर सवाल उठ रहे हैं।
आरक्षण केवल कागजों तक?

कई कॉलेजों में अब भी आरक्षित वर्ग के शिक्षकों की नियुक्ति पूर्ण नहीं हो पाई है। डॉ. सुमन के अनुसार यह स्थिति दर्शाती है कि Delhi University केवल कागजों में आरक्षण नीति का पालन कर रहा है, जबकि हकीकत में सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व देने वाले संस्थान से इस प्रकार की स्थिति निराशाजनक और चिंताजनक है।
सामाजिक समावेशिता: नेतृत्व में विविधता की जरूरत
शिक्षण संस्थानों में केवल आरक्षण देकर सामाजिक समावेशिता सुनिश्चित नहीं की जा सकती। यह जरूरी है कि नेतृत्व स्तर पर भी विविधता हो, ताकि नीतियों और फैसलों में वास्तविक प्रतिनिधित्व नजर आए। आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को शीर्ष प्रशासनिक पदों पर लाकर ही समता और समावेशिता के आदर्श को मजबूती दी जा सकती है।
शिक्षकों में बढ़ रही नाराजगी
फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस का कहना है कि अगर Delhi University प्रशासन ने जल्द कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया, तो शिक्षकों में असंतोष और नाराजगी और बढ़ सकती है। यह स्थिति न केवल शैक्षणिक माहौल को प्रभावित कर सकती है, बल्कि डीयू जैसी संस्था की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
आरक्षण नीति का व्यापक क्रियान्वयन जरूरी
Delhi University जैसे संस्थान से अपेक्षा की जाती है कि वह संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा। शीर्ष पदों पर आरक्षित वर्ग की नियुक्ति केवल एक सांकेतिक निर्णय नहीं होगा, बल्कि यह एक सांस्कृतिक बदलाव का प्रतीक बनेगा। इससे अन्य संस्थानों को भी प्रेरणा मिलेगी, और देशभर में समावेशिता की लहर को बल मिलेगा।

फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस की ओर से उठाई गई यह मांग केवल अवसर की मांग नहीं है, बल्कि यह एक संवैधानिक अधिकार और सामाजिक जिम्मेदारी की ओर संकेत करती है। जब Delhi University में नेतृत्व के स्तर पर आरक्षित वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित होगी, तभी शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक परिवर्तन संभव है।
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