भारत ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया रक्षा मंत्रियों की बैठक, जो चीन के क़िंगदाओ शहर में आयोजित हुई, भारत की कूटनीतिक दृढ़ता और नीतिगत स्पष्टता का नया उदाहरण बन गई है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बैठक में आतंकवाद का ज़िक्र नहीं होने के कारण संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
SCO बैठक का संदर्भ: क्या है मामला?
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कज़ाख़िस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान जैसे देश शामिल हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ सामूहिक प्रयासों को तेज़ करना।
लेकिन 2025 की बैठक में आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर कोई सटीक और स्पष्ट संदर्भ साझा बयान में शामिल नहीं किया गया, जिससे भारत ने असहमति जताई।
राजनाथ सिंह का साहसिक कदम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा कि:
“जब संगठन की मूल भावना ही आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई है, तो संयुक्त बयान में आतंकवाद का उल्लेख न होना गंभीर चूक है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत किसी भी मंच पर अपनी सुरक्षा और नैतिक मूल्यों पर समझौता नहीं करेगा। SCO जैसे मंचों पर केवल औपचारिकता निभाने के बजाय मुद्दों की गहराई से चर्चा आवश्यक है, विशेषकर जब आतंकवाद भारत सहित कई देशों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है।
एस जयशंकर ने किया समर्थन, पाकिस्तान को घेरा
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी राजनाथ सिंह के निर्णय का पूरी तरह से समर्थन किया और मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि:
- “SCO का गठन ही आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयासों के लिए हुआ था।”
- बैठक में केवल एक देश (संकेत पाकिस्तान की ओर) ऐसा था जिसने आतंकवाद का ज़िक्र नहीं करने की वकालत की।
- भारत ऐसे देशों के दबाव में नहीं आएगा जो अपने राजनीतिक एजेंडे के चलते आतंकवाद पर चुप्पी साधे रखना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि यह भारत की विदेश नीति की परिपक्वता और दृढ़ता को दर्शाता है।

पाकिस्तान की चुप्पी और पोल
जयशंकर ने इशारों में पाकिस्तान पर तीखा हमला बोला और बताया कि:
“बैठक में कुछ देश आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा रोकने की मांग कर रहे थे। लेकिन भारत के लिए यह मुद्दा राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है।”
पाकिस्तान की ऐसी स्थिति दर्शाती है कि वह अभी भी आतंकवाद को लेकर दोहरे मापदंड अपनाता है।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का उदाहरण
जयशंकर ने यह भी बताया कि भारत अब विदेश नीति को केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं मानता, बल्कि इसमें सर्वदलीय एकता को अहम मानता है। उन्होंने हाल के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विपक्ष और सत्तापक्ष के नेताओं की संयुक्त भागीदारी की सराहना की।
शशि थरूर, सुप्रिया सुले, रविशंकर प्रसाद जैसे अलग-अलग विचारधाराओं के नेताओं ने जब विदेश दौरों में एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो वह भारत की लोकतांत्रिक ताकत और एकजुटता का प्रतीक बन गया।
क्यों जरूरी है SCO में आतंकवाद का जिक्र?
भारत का रुख सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामरिक, कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से अहम है। SCO जैसे मंच पर आतंकवाद को नजरअंदाज करना:
- संगठन की वैधता और उद्देश्य पर सवाल खड़ा करता है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा तंत्र को कमजोर करता है।
- उन देशों को बढ़ावा देता है जो आतंकवाद को पनाह देते हैं।
भारत के लिए यह आवश्यक है कि सभी बहुपक्षीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट और कठोर नीति अपनाई जाए।
वैश्विक मंच पर भारत का संदेश
इस घटनाक्रम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कूटनीतिक ताकत को उजागर किया:
- भारत ने दिखा दिया कि वह अब केवल ‘फॉलोअर डिप्लोमेसी’ नहीं कर रहा, बल्कि वैश्विक एजेंडा को प्रभावित कर रहा है।
- आतंकवाद पर भारत की स्पष्ट नीति ने अन्य देशों को भी आत्मनिरीक्षण के लिए मजबूर किया है।
- भारत ने SCO में राजनीतिक साहस दिखाते हुए साफ संदेश दिया कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है।
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