नई दिल्ली, 16 जून 2025 (ANI): कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर मोदी सरकार पर तीखे आरोप लगाए कि सरकार MNREGA, जो कि गरीबों की जीवन-रेखा है, को कमजोर करने की लगातार कोशिश कर रही है। उन्होंने विशेष रूप से वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों के लिए MNREGA खर्च सीमा को 60% तक सीमित करने की योजना को संविधान विरोधी बताया।
संविधान की धज्जियाँ उड़ाना?
खड़गे ने तर्क दिया कि MNREGA राज्य का नागरिकों को ‘काम का अधिकार’ (Right to Work) प्रदान करने वाला एक संवैधानिक अधिकार है, और इस पर सरकारी कटौती करना सीधे संविधान के खिलाफ है । उन्होंने कहा,
“Modi government is trying to destroy MNREGA, the lifeline of the poor … Cutting down MNREGA … is a crime against the Constitution.”
खड़गे ने सवाल उठाया कि क्या सरकार ऐसा इसलिए कर रही है कि MNREGA पर लगभग ₹25,000 करोड़ केंद्रीय खजाने में वापस लाने की जबरन कोशिश कर सके। साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि यदि मौसम, विपरित परिस्थितियां, या कोई आपदा पहली छमाही में आती है, तो क्या यह कटौती गरीबों की आर्थिक निर्भरता को नष्ट कर देगी?
खड़गे ने Lib Tech की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि केवल 7% ग्रामीण परिवारों को ही MNREGA के अंतर्गत प्रतिज्ञाबद्ध 100 दिन का काम मिला। उन्होंने यह तथ्य भी उठाया कि आधा दर्जन करोड़ पंजीकृत कार्यकर्ताओं को आधार आधारित भुगतान प्रणाली की आवश्यकता के कारण योजना से बाहर रखा गया।
कांग्रेस की मांगें:
खड़गे ने स्पष्ट रूप से दो मांगें रखी हैं:
- MNREGA मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन ₹400 प्रतिदिन तय किया जाए।
- हर साल कम से कम 150 दिनों का रोजगार प्रत्येक ग्रामीण परिवार को मुहैया कराया जाए।
कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह इस बजटीय कटौती की तेज़ विरोध करेगी क्योंकि यह गरीबों के जीवन पर गंभीर प्रभाव डालेगी ।

MNREGA एक मांग आधारित (डिमांड-ड्रिवन) योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में तब रोजगार उपलब्ध कराना है जब लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो। इस योजना की ताकत इसकी लचीलापन है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसे पहले छह महीनों के लिए केवल 60% बजटीय सीमा में बांध देना इसके मूल उद्देश्य को कमजोर कर सकता है। प्राकृतिक आपदाओं, जैसे सूखा या बाढ़ के समय रोजगार की मांग अचानक बढ़ जाती है और अगर पहले ही बजट खर्च हो चुका हो, तो सरकार लोगों को काम देने में असमर्थ हो सकती है, जिससे उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा। इसके अलावा, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की अनिवार्यता के कारण लगभग 7 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को योजना से बाहर कर दिया गया है, जिससे न केवल उनका रोजगार छीना गया बल्कि यह उनके आत्मसम्मान पर भी आघात है। यह स्थिति योजना की समावेशिता पर सवाल खड़े करती है। अंततः, चूंकि MNREGA संविधान में दिए गए ‘काम के अधिकार’ को सुनिश्चित करता है, इसलिए सरकार द्वारा इसमें अड़चन डालना संविधान की अवहेलना के दायरे में आता है। ऐसी नीतियों से यह आशंका और भी गहरी हो जाती है कि सरकार गरीबों के कल्याण की बजाय उनके अधिकारों पर अंकुश लगाने की दिशा में बढ़ रही है।
मल्लिकार्जुन खड़गे की आलोचना केंद्र सरकार द्वारा MNREGA पर लगाई गई 60% खर्च सीमा के फैसले को राष्ट्रीय चिंता का विषय बता रही है। यदि इस सीमा को सही नहीं तरीके से सुधार कर लागू नहीं किया गया, तो यह गरीबों की आजीविका और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को हानि पहुँचा सकता है। कांग्रेस द्वारा उठाई गई मांगें मात्र चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि जननीति और गरीब कल्याण के गहरे जोख़िम को दर्शाने वाली हैं।
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