WSJ | 30 May 2025
रूस और उत्तर कोरिया के बीच गहराता सैन्य सहयोग वैश्विक चिंता का विषय बनता जा रहा है। रूस ने उत्तर कोरिया को उन्नत वायु रक्षा प्रणाली और मिसाइल टेक्नोलॉजी दी है, जबकि उत्तर कोरिया ने रूस को हथियार और सैनिकों की बड़ी खेप भेजी है। जानिए इस डील का पूरा सच।
मॉस्को और प्योंगयांग के बीच सैन्य सहयोग के तेजी से गहराते रिश्तों ने अमेरिका, दक्षिण कोरिया और उनके सहयोगियों की चिंता बढ़ा दी है। एक नई अंतरराष्ट्रीय निगरानी रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने उत्तर कोरिया को ‘पैंटिर’ मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम और अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की है। यह सहयोग संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की खुली अवहेलना है, जिन पर खुद रूस ने हस्ताक्षर किए थे।
पैंटिर एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति
‘पैंटिर’ डिफेंस सिस्टम एक मोबाइल वायु रक्षा प्रणाली है जो सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों और ऑटोमैटिक तोपों से लैस होती है। इसकी खासियत यह है कि यह दुश्मन के एयरक्राफ्ट और मिसाइलों को बेहद कम रेंज में ही खत्म करने में सक्षम है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह मिसाइल सिस्टम 3.2 मैक की गति से उड़ान भर सकती है, जो भारत-रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस से भी तेज है। हालांकि, दोनों हथियार प्रणालियाँ पूरी तरह से अलग वर्ग की हैं। जहां ब्रह्मोस लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइल है जिसकी रेंज लगभग 650 किलोमीटर है, वहीं पैंटिर एक शॉर्ट रेंज डिफेंस सिस्टम है जिसकी अधिकतम मारक क्षमता करीब 20 किलोमीटर तक है।

रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि उत्तर कोरिया ने सितंबर 2023 से रूस को हथियारों की एक भारी खेप भेजी है। बताया गया है कि लगभग 20,000 कंटेनरों के जरिए यह हथियार भेजे गए, जिनमें 90 लाख से अधिक आर्टिलरी शेल, सैकड़ों मिसाइलें, भारी तोपें और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलें शामिल थीं। यह मात्रा इतनी ज्यादा है कि इनसे तीन फुल आर्टिलरी ब्रिगेड को आसानी से हथियारबंद किया जा सकता है।
इस सहयोग का दायरा सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया ने रूस को 11,000 से अधिक सैनिक भी भेजे हैं। इन सैनिकों को रूस की एयरबोर्न ब्रिगेड और मरीन यूनिट्स में तैनात किया गया है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इन सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है ताकि वे रूसी सैन्य अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा सकें। यह कदम न केवल असामान्य है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सैन्य संतुलन के लिहाज से भी बेहद संवेदनशील माना जा रहा है।
इसके अलावा, रूस ने उत्तर कोरिया की मिसाइल गाइडेंस टेक्नोलॉजी को उन्नत बनाने में मदद की है। उत्तर कोरिया की मिसाइलें पहले अपेक्षाकृत कम सटीकता वाली मानी जाती थीं, लेकिन हाल के परीक्षणों में उनकी सटीकता में काफी सुधार देखा गया है। इस बदलाव के पीछे रूस की तकनीकी मदद को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह सहयोग भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों का सीधा उल्लंघन है।

आर्थिक स्तर पर भी रूस ने प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए उत्तर कोरिया की खुलकर मदद की है। रिपोर्ट बताती है कि रूस ने उत्तर कोरिया को पिछले वर्ष एक मिलियन बैरल से अधिक तेल भेजा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार यह सीमा 500,000 बैरल सालाना तय की गई है। इसके साथ ही, करीब 8,000 उत्तर कोरियाई मजदूरों को रूस में रोजगार भी दिया गया है, जो मानवाधिकार और प्रतिबंध दोनों ही पहलुओं से गंभीर मुद्दा है। दिलचस्प बात यह है कि यह आर्थिक लेनदेन दक्षिण ओसेशिया जैसे विवादित इलाकों के जरिए अंजाम दिए जा रहे हैं, ताकि इन पर सीधे नजर रखना मुश्किल हो।
इन खुलासों के बाद अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के कई देशों ने संयुक्त बयान जारी कर रूस और उत्तर कोरिया के इस सहयोग की कड़ी निंदा की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सैन्य गठजोड़ सिर्फ यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचने का जरिया नहीं है, बल्कि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र की रणनीतिक स्थिरता को भी खतरे में डाल सकता है। संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता के चलते अमेरिका और उसके सहयोगियों ने एक नया निगरानी समूह MSMT (Multinational Sanctions Monitoring Team) बनाया है, जो अब इस सहयोग की निगरानी कर रहा है।
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