यह ब्लॉग टाइम्स ऑफ इंडिया में एक्सिस बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट नीलकंठ मिश्रा के लेख और डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान पर आधारित है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा — हालांकि उन्होंने खुद कहा कि उनके पास इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
Russian Oil India डील को लेकर अमेरिका की नाराज़गी क्यों?
अमेरिका और पश्चिमी देश लगातार भारत पर दबाव बना रहे हैं कि वह रूस से सस्ता तेल खरीदना बंद करे, क्योंकि इससे रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक फायदा मिलता है।
हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि “भारत रूस से अब तेल नहीं खरीदेगा”, हालांकि उन्होंने यह भी माना कि यह सिर्फ उन्हें “कहीं से सुनने” को मिला है, न कि किसी पुख्ता जानकारी से।
एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?
नीलकंठ मिश्रा के अनुसार, अगर भारत और चीन जैसे बड़े खरीदार रूस से तेल खरीदना बंद कर देते हैं तो यह निर्णय सिर्फ रूस को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को महंगा पड़ेगा।
📌 ब्रेंट क्रूड और रूसी यूराल ग्रेड में अंतर पहले 30 डॉलर था, अब सिर्फ 2-3 डॉलर है।
📌 भारत प्रतिदिन रूस से 1.5 से 2 मिलियन बैरल तेल खरीदता है। इससे सालाना 1-2 अरब डॉलर की बचत होती है।
हालांकि यह बचत 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मामूली दिखती है, लेकिन तेल के वैश्विक बाजार में इसका गहरा असर होता है।
भारत के कदम से पूरी दुनिया पर असर कैसे?
अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो:
- कच्चे तेल की कीमतें 10 से 15 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं।
- इससे भारत को अरबों डॉलर का घाटा होगा।
- अमेरिका में भी ईंधन महंगा हो जाएगा, जिससे राजनीतिक दबाव बढ़ेगा।
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क्या वाकई भारत रूस को फंड कर रहा है?
पश्चिमी मीडिया और अमेरिकी सांसदों का आरोप है कि भारत और चीन रूस को युद्ध फंडिंग दे रहे हैं, क्योंकि वे वहां से तेल खरीद रहे हैं। लेकिन आंकड़ों से यह बात पूरी तरह गलत साबित होती है।
- रूस हर दिन 9.5 मिलियन बैरल तेल निकालता है।
- इनमें से लगभग 7 मिलियन बैरल का निर्यात होता है।
- समुद्री रास्ते से आने वाले 4 मिलियन बैरल में से आधा भी भारत नहीं लेता।
मतलब, भारत सिर्फ एक छोटा–सा हिस्सा ले रहा है, जिससे युद्ध में रूस को सीधी मदद मिलने की बात प्रोपेगेंडा से ज्यादा कुछ नहीं लगती।

क्या होगा अगर भारत तेल लेना बंद कर दे?
अगर भारत तेल लेना बंद करता है, तो न केवल रूस को झटका लगेगा, बल्कि इससे:
- कच्चे तेल के दाम 10–15 डॉलर प्रति बैरल बढ़ जाएंगे।
- भारत को अरबों डॉलर की हानि झेलनी पड़ेगी।
- वैश्विक बाजार में स्टैगफ्लेशन (मंदी + महंगाई) का खतरा बढ़ेगा।
- अमेरिका में पेट्रोल की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे वहां के चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।
भारत के लिए रूस से तेल लेना कितना फायदेमंद?
- भारत को पहले 25–30 डॉलर/बैरल का मार्जिन मिलता था, अब यह घटकर 2–3 डॉलर रह गया है।
- फिर भी भारत दुनिया की सस्ती एनर्जी मार्केट से तेल लेकर अपने नागरिकों को राहत दे रहा है।
- भारत का Energy Security प्लान, वैश्विक दबाव से कहीं ज्यादा जरूरी है।
अमेरिका को लगता है कि अगर भारत तेल नहीं खरीदेगा तो रूस कमजोर होगा, लेकिन हकीकत यह है कि इससे अमेरिका में गैस की कीमतें, भारत में महंगाई, और वैश्विक बाजार में अनिश्चितता ही बढ़ेगी। भारत का स्टैंड आर्थिक विवेक, वैश्विक स्थिरता, और अपने हितों की रक्षा के लिए है – न कि किसी पक्ष के लिए।
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