सोमवती अमावस्या 2025 कब है?
तिथि: सोमवार, 26 मई 2025
अमावस्या प्रारंभ: 25 मई 2025, रात 09:41 बजे
अमावस्या समाप्त: 26 मई 2025, रात 11:24 बजे
सोमवती अमावस्या तब होती है जब अमावस्या की तिथि सोमवार को पड़ती है। यह संयोग बहुत ही दुर्लभ होता है और इसे बेहद शुभ माना जाता है।
स्नान और दान का महत्व
महाभारत (अनुशासन पर्व) में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा था:
“जो व्यक्ति सोमवती अमावस्या पर गंगा स्नान करता है और पितरों का तर्पण करता है, उसे हजार अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।”
(संदर्भ: महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय 91)
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, तिल, गाय, वस्त्र और अन्न का दान विशेष रूप से फलदायक माना जाता है।
पितृ तर्पण और श्राद्ध का महत्व
गरुड़ पुराण में उल्लेख है:
“अमावस्या, विशेषकर सोमवती को, जल, तिल और पिंडदान से पितर तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।”
इसलिए, इस दिन पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध और विशेष पूजा की जाती है। कई श्रद्धालु गंगा के तट पर पिंडदान और पितृ पूजन करते हैं।
वट वृक्ष की पूजा और व्रत कथा
विवाहित महिलाएं इस दिन वट सावित्री व्रत करती हैं। वे वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं।
“वटवृक्षस्य पूजया दीर्घायु: पति: भवेत्।”
(स्रोत: कर्मकांड दीपिका)
व्रत कथा के अनुसार, सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन तप और भक्ति के बल पर वापस प्राप्त किया था।
सोमवती अमावस्या का वैज्ञानिक पक्ष
अमावस्या को चंद्रमा पूर्णतः अदृश्य होता है, जिससे मानसिक असंतुलन और भावनात्मक उतार-चढ़ाव अधिक हो सकते हैं।
सोमवार चंद्रमा से जुड़ा दिन माना जाता है, और जब यह दिन अमावस्या से मेल खाता है, तो वातावरण में एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है।
इस दिन तिल का उपयोग विशेष होता है, जो एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होता है और शरीर को शुद्ध करने में सहायक होता है।

पूजा विधि (संक्षेप में)
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- वट वृक्ष की पूजा करें और सात बार परिक्रमा करें।
- तिल मिश्रित जल से पितरों का तर्पण करें।
- ब्राह्मण, गाय और निर्धनों को भोजन और वस्त्र दान करें।
- “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ पितृदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
समापन विचार
सोमवती अमावस्या न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि, पितृ कृतज्ञता और प्रकृति पूजन का एक अनुपम अवसर भी है। यह दिन सामाजिक संतुलन, पारिवारिक समृद्धि और मानसिक शांति का संदेश देता है।
स्रोत:
- महाभारत – अनुशासन पर्व, अध्याय 91
- गरुड़ पुराण – प्रेत खंड
- कर्मकांड दीपिका – पं. श्रीकांत शर्मा द्वारा संपादित
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