Supreme Court Hearing on Bihar Voter List Revision: Key Questions on Aadhaar and Citizenship – Top15News: Latest India & World News, Live Updates

बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के वकील ने पुनरीक्षण को गलत बताया। पुनरीक्षण में आधार कार्ड को दस्तावेजों की सूची से बाहर रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। लंबी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वह पुनरीक्षण के लिए जरूरी दस्तावेजों में आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड को शामिल करने पर विचार करे। साथ ही तीन मुद्दों पर जवाब दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की है।

सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर रोक नहीं लगाई है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम रोक की मांग नहीं की है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि हम सांविधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग को अपना हलफनामा दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। वहीं याचिकाकर्ताओं को उसके एक सप्ताह बाद जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन मुद्दों पर मांगा जवाब

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान कराने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। इन तीन मुद्दों पर जवाब देने की जरूरत है।

पुनरीक्षण को बिहार चुनाव से क्यों जोड़ रहे: सुप्रीम कोर्ट

इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप इस प्रक्रिया को नवंबर में होने वाले चुनाव से क्यों जोड़ रहे हैं? यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरे देश के चुनाव से स्वतंत्र हो सकती है। इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।

मतदाताओं के बिना चुनाव आयोग का अस्तित्व नहीं

चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग एक सांविधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को क़ानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।

आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं: चुनाव आयोग

मतदाता सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों से आधार कार्ड को बाहर रखने पर चुनाव आयोग ने कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। अगर आपको पुनरीक्षण के जरिये नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था। इसमें अब बहुत देर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परेशानी पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं है। बल्कि दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से है। 

न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि इस गहन प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है ताकि गैर-नागरिक मतदाता सूची में न रहें, लेकिन यह इस चुनाव से पहले होना चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि एक बार मतदाता सूची को अंतिम रूप दे दिया जाए और अधिसूचित कर दिया जाए और उसके बाद चुनाव हों तो कोई भी अदालत उसमें हाथ नहीं डालेगी।

इसमें बहुत देर हो गई है, आपको पहले यह काम करना चाहिए था

इससे पहले न्यायमूर्ति धूलिया ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि नागरिकता के लिए प्रक्रिया में साक्ष्यों का कड़ाई से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसके लिए अर्ध-न्यायिक प्राधिकार होना चाहिए। अगर आपको बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर के तहत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए थी। अब देर हो चुकी है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता होने के लिए नागरिकता की जांच आवश्यक है।

गलियों में न जाएं, हाईवे पर ही रहें: जस्टिस धूलिया

याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि बिहार में अंतिम मतदाता सूची जून में ही अस्तित्व में आ गई थी। इसके बाद न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग इसमें न्यायाधीशों, पत्रकारों और कलाकारों को शामिल कर रहा है क्योंकि वे पहले से ही जाने जाते हैं। हमें इसे ज्यादा लंबा नहीं खींचना चाहिए। हमें गलियों में नहीं जाना चाहिए, बल्कि हाईवे पर ही रहना चाहिए। न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि आपका मुख्य तर्क दस्तावेज़ों की श्रेणी से आधार कार्ड को बाहर रखना है।

याचिकाकर्ता के वकील से कहा- आप बताएं चुनाव आयोग यह काम कब करे

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम आयोग के गहन पुनरीक्षण और संक्षिप्त पुनरीक्षण नियमों में है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि हमें बताइए कि आयोग से यह कब करने की अपेक्षा की जाती है? समय-समय पर या कब? आप चुनाव आयोग की शक्तियों को नहीं, बल्कि उसके संचालन के तरीके को चुनौती दे रहे हैं। 

चुनाव आयोग जो कर रहा वह संविधान के तहत अनिवार्य

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि यह मतदाता सूची का पुनरीक्षण है। इसका एकमात्र प्रासंगिक प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 है। अधिनियम और नियमों के तहत मतदाता सूची का नियमित पुनरीक्षण किया जा सकता है। एक गहन पुनरीक्षण है और दूसरा संक्षिप्त पुनरीक्षण। गहन पुनरीक्षण में पूरी मतदाता सूची को मिटा दिया जाता है और पूरी प्रक्रिया नई होती है, जिससे सभी 7.9 करोड़ मतदाताओं को गुजरना पड़ता है। संक्षेप में, मतदाता सूची में छोटे-मोटे संशोधन किए जाते हैं। यहां जो हुआ, वह एक विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश देना है।

इस पर जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। उन्होंने पिछली बार 2003 में ऐसा किया था। क्योंकि गहन अभ्यास किया जा चुका है। उनके पास इसके आंकड़े हैं। वे फिर से माथापच्ची क्यों करेंगे? चुनाव आयोग के पास इसके पीछे एक तर्क है। 

कई याचिकाएं की गईं दायर

बिहार में चुनाव से पहले एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) के नेताओं की संयुक्त याचिका सहित कई नई याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गईं। राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की अलग-अलग याचिकाओं के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार एनसीपी गुट से सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

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