Bangladesh Temple Action को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच एक बार फिर तनाव की स्थिति बन गई है। ढाका के खिलखेत इलाके में स्थित एक अस्थायी दुर्गा मंदिर पर बुलडोजर चलाए जाने के बाद भारत ने इस कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए मंदिर गिराने की वजह सार्वजनिक की।
बांग्लादेश रेलवे प्रशासन ने दावा किया कि यह मंदिर रेलवे की सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाया गया था। हालांकि, भारत की आपत्ति के बाद बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर पूजा स्थलों की सुरक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
क्या है Bangladesh Temple Action मामला?
Bangladesh Temple Action की शुरुआत तब हुई जब ढाका के खिलखेत क्षेत्र में एक अस्थायी दुर्गा मंदिर को गिरा दिया गया। यह मंदिर कथित रूप से रेलवे की जमीन पर बना हुआ था। बांग्लादेश रेलवे ने 26 जून को एक बड़े अभियान के तहत रेल पटरियों के किनारे बनी सभी अनधिकृत संरचनाओं को हटाने का निर्णय लिया था। इसी क्रम में इस दुर्गा मंदिर को भी गिरा दिया गया।
प्रशासन का कहना है कि इस मंदिर की शुरुआत अस्थायी मंडप के रूप में हुई थी लेकिन आयोजक इसे स्थायी संरचना में बदलने की कोशिश कर रहे थे। कई बार चेतावनी देने के बावजूद मंदिर को हटाया नहीं गया, जिसके चलते यह कार्रवाई की गई।
भारत की कड़ी आपत्ति
Bangladesh Temple Action पर भारत की प्रतिक्रिया तीखी रही। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बांग्लादेश में बार-बार इस प्रकार की घटनाएं हो रही हैं। भारत ने बांग्लादेश सरकार से अपील की कि हिंदू समुदाय और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
भारत का कहना है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंदिर को सुरक्षा देने की बजाय उसे अवैध कब्जा बताकर ढहा दिया, जबकि वहां पहले भी भीड़ द्वारा मंदिर हटाने की मांग की जा चुकी थी। यह घटना बांग्लादेश के भीतर हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पर फिर से सवाल खड़े करती है।
बांग्लादेश की सफाई
Bangladesh Temple Action को लेकर आलोचना बढ़ने पर बांग्लादेश सरकार ने स्थिति स्पष्ट की। विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह सभी समुदायों के धार्मिक अधिकारों और पूजा स्थलों की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लेकिन यह भी कहा गया कि सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक संरचना बनाना स्वीकार नहीं किया जा सकता।

सरकार का कहना है कि कानून के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल को सार्वजनिक संपत्ति पर नहीं बनाया जा सकता। यदि कोई संरचना अवैध रूप से बनी है, तो उसे हटाने की कार्रवाई कानूनन वैध मानी जाएगी। हालांकि, किसी भी कार्रवाई में सभी धार्मिक समुदायों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
क्या यह धार्मिक आजादी का उल्लंघन है?
Bangladesh Temple Action ने इस सवाल को जन्म दिया है कि क्या यह कार्रवाई धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। एक ओर जहां बांग्लादेश सरकार इसे भूमि उपयोग की वैधता से जोड़ती है, वहीं भारत समेत कई संगठनों का मानना है कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को लक्षित करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
सामाजिक और कूटनीतिक असर
Bangladesh Temple Action के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों पर भी असर पड़ता दिखाई दे रहा है। भारत बांग्लादेश का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी और सहयोगी देश है। लेकिन ऐसी घटनाएं द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं। विशेषकर तब जब धार्मिक मुद्दे जुड़ जाते हैं।
भारत की ओर से उठाए गए मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी उठाया जा सकता है, जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा एक संवेदनशील विषय है।
बांग्लादेश का रुख आगे क्या होगा?
Bangladesh Temple Action पर सफाई देने के बाद बांग्लादेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह यह साबित करे कि उसने किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बनाया है। इसके लिए जरूरी है कि वह सभी धार्मिक स्थलों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाए और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करे।
यूनुस सरकार ने बयान देकर स्पष्ट किया है कि देश में कोई भी धार्मिक स्थल अवैध तरीके से सार्वजनिक भूमि पर नहीं बनाया जा सकता, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि ऐसी कार्रवाइयां संवेदनशीलता के साथ की जाएं।
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