दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज़ में शामिल Harvard University (हार्वर्ड यूनिवर्सिटी) इन दिनों वैश्विक सुर्खियों में है। दरअसल अमेरिकी ट्रंप प्रशासन ने 22 मई 2025 को विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय छात्रों को नामांकित करने की क्षमता को रद्द कर दिया है। इस निर्णय से लगभग 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रभावित हुए हैं, जो Harvard की छात्र संख्या का लगभग 27% हैं। इस अभूतपूर्व फैसले से दुनिया भर के छात्रों का भविष्य संकट में आ गया है, जिसमें भारत के सैकड़ों छात्र भी शामिल हैं। इन छात्रों को अब अन्य संस्थानों में स्थानांतरित होना होगा या वे अपने कानूनी स्थिति को खोने के जोखिम में हैं।
ट्रंप प्रशासन का आरोप
अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने Harvard University पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि संस्थान अमेरिका विरोधी विचारों को बढ़ावा देता है, यहूदी विरोधी गतिविधियों को रोकने में विफल रहा है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से संदिग्ध संबंध रखता है और विदेशी छात्रों से जुड़े अपराध संबंधी डेटा को साझा नहीं करता। DHS की सचिव क्रिस्टी नोएम ने स्पष्ट किया कि “विदेशी छात्रों को नामांकित करना एक विशेषाधिकार है, अधिकार नहीं,” और Harvard को 72 घंटों के भीतर सभी जरूरी रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।
Harvard की प्रतिक्रिया
Harvard ने इस निर्णय को “गैरकानूनी” और “प्रतिशोधात्मक” बताया है। Harvard University ने कहा कि यह फैसला अकादमिक स्वतंत्रता, वैश्विक सहयोग और छात्रों के अधिकारों के खिलाफ है। हम अपने छात्रों के साथ खड़े हैं और कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। यह कदम अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शिक्षाविदों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है और अमेरिका की शैक्षणिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है। Harvard ने अपने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन का वादा किया है और कानूनी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है।

भारत और भारतीय छात्रों की प्रतिक्रिया
इस निर्णय से भारत सहित कई देशों के छात्र प्रभावित हुए हैं। भारत से लगभग 800 छात्र हार्वर्ड में पढ़ते हैं, जिनमें अंडरग्रेजुएट, ग्रेजुएट और पीएचडी के छात्र शामिल हैं। ये छात्र तकनीक, पब्लिक पॉलिसी, बायोलॉजी, मैनेजमेंट, लॉ जैसे विषयों में पढ़ाई कर रहे हैं और अब उन्हें अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। छात्रों को अब ये डर है कि अगर Harvard वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर पाता, तो छात्रों को या तो अमेरिका छोड़ना होगा या ट्रांसफर करना होगा किसी और यूनिवर्सिटी में। कई भारतीय छात्रों के पास Summer Internships, Research Fellowships, और OPT (Optional Practical Training) के ऑफर हैं, जो अब रद्द हो सकते हैं।
कई छात्र जो अभी भारत में हैं और एडमिशन ले चुके हैं, वे सोशल मीडिया पर #SaveHarvardStudents के तहत अपील कर रहे हैं कि उन्हें विकल्प दिए जाएं।
एक छात्र ने ट्विटर पर लिखा:“मैंने अपनी नौकरी छोड़ी, लाखों रुपये खर्च किए और अब वीज़ा रद्द हो सकता है? ये कैसा न्याय है?“
हालांकि अब तक भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सोशल मीडिया पर छात्र विदेश मंत्रालय से हस्तक्षेप की अपील कर रहे हैं। भारत में कई शैक्षणिक संस्थान और पूर्व छात्र संगठन इस फैसले की निंदा कर चुके हैं। भारत सहित पूरी दुनिया अब इस मामले पर नज़र गड़ाए बैठी है, क्या ट्रंप प्रशासन अपनी सख्ती पर कायम रहेगा या छात्रों के हितों को देखते हुए कोई संतुलित रास्ता निकलेगा?
अमेरिका को क्यों आंखें दिखा रहा है चीन?
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